*देश के लोकतंत्र को खोखला करता मीडिया !!!*
*देश
के लोकतंत्र को खोखला करता
मीडिया !!!* *प्रसून कुमार मिश्रा, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट, संस्थापक VSP*
लोकतंत्र
के चौथे स्तम्ब कहे जाने वाली मीडिया पर ही आज
लोकतंत्र को खोखला करने
का आछेप लग रहा है
। आखिर इसका कारण क्या है,जब हम
इसकी पड़ताल करते है तो पता
चलता है की यह
एक पेशा की जगह एक
व्यवसाय बन चूका है
जहाँ बड़े -बड़े पूंजीपति पैसे लगाते हैं, पैसे
कमाने के लिए ।
यदि पत्रकारिता व्यवसाय बन जाता है
तो स्वाभाविक है की सिर्फ
पैसे कमाने के लिए ही
काम की जाती है।
यही हुआ हमारे मीडिया (पत्रकारिता) के साथ। सबसे
बड़ी बात यह
है की मीडिया लोगों
के दिमाग पर बहुत जल्दी
छा जाता है और असर
करता है और बहुत
ही काम समय में दूर तक और अधिक
से अधिक लोगों तक बात को
पंहुचा देता है। इस बात का
पूरा फायदा हमारे देश की मीडिया उठती
है। चुनाव में भी हम देख
सकते है की मीडिया
इस लोकतंत्र को कैसे पार्टीतंत्र
और धनतंत्र में बदल देता है । किसी
भी निर्वाचन छेत्र को आप ले
लें, हमारे देश की मीडिया चंद
लोगों का ही कवरेज
करती है और ओ
भी शायद जो बड़ी पार्टियों
से होते हैं।बड़ी बड़ी पार्टियां पैसे के बल पर
अपने प्रचार मीडिया के द्वारा कराती
हैं, जिससे मीडिया को उनसे बहुत
आमदनी होती हैं और यदि पार्टी
सत्ता में आ जाये तो
भी, सरकार भी मीडिया
को बहुत पैसे देती हैं प्रचार के लिए ।
तब यह मीडिया अपनी
जवाबदेही भूल जाता हैं और जहाँ से
पैसे मिलते हैं उनका ही गुणगान शुरू
हो जाता है और इस
तरह मीडिया में एक अघोषित भरष्टाचार
शुरू हो जाता हैं।
आज की हालत भी
कुछ इसी प्रकार की हैं ।मीडिया
का यह काम बहुत
ही भेद भाव पूर्ण होता हैं, जो इस देश
के लोकतंत्र को खोखला करते
हुए देश में पार्टीतंत्र और धनतंत्र को
स्थापित करता जा रहा हैं
जिसमे आम आदमी के
आवाज हेतु कोई जगह नहीं बचता हैं क्योंकि अपनी आवाज उठाने हेतु उसके पास पैसे की ताकत नहीं
होती हैं। मीडिया के इस कारनामों
को लोकतंत्र चुपके से सहन करते
जा रही हैं इसका मुख्य कारण, आजादी के इतने सालों
बाद भी मीडिया के
रेगुलेशन हेतु कोई कानून या निर्देशन का
ना बन पाना। यदि
देश के लोकतंत्र को
पार्टीतंत्र और धनतत्र से
बचाना हैं तो मीडिया यानि पत्रकारिता को भी अन्य पेशे जैसे वकालत और
डॉक्टरी की तरह बनाना होगा । इसके लिए भी बार कौंसिल और मेडिकल कौंसिल की तरह मीडिया कौंसिल बनानी पड़ेगी और इसमें काम करने वालों को अन्य काम करने
पर कुछ पावंदी लगानी होगी, ताकि यह काम सिर्फ एक प्रोफेशनल तक ही रह पाए, जिससे इसका
व्यवसाई-करण बंद हो जाये । इसके लिए भी कोड ऑफ़ कंडक्ट बनाने की जरुरत हैं ताकि यहाँ
पर काम करने वाले अपने नैतिक मूल्यों को भूल ना पाएं। साथ ही इन मूल्यों को तोड़ने पर
सजा की भी प्रावधान हो, तब जाकर हम अपने लोकतंत्र को बहाल रख पायेंगें अन्यथा हमारे
देश का लोकतंत्र पूर्ण रूप से पार्टीतंत्र और धनतंत्र में बदल जायेगा, जहाँ आम लोगों
के लिए कोई जगह नहीं होगी ।
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