*'चुनाव आयोग' भारतीय लोकतंत्र में सबसे बड़ा खतरा!!!*

*'चुनाव आयोग' भारतीय लोकतंत्र में सबसे बड़ा खतरा!!!*
 
*प्रसून कुमार मिश्रा, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट, संस्थापक, विश्व शक्ति पार्टी*

भारत के संविधान के आर्टिकल ३२४ के अनुसार भारत का चुनाव आयोग एक स्वतंत्र  संस्था है I इन्हें चुनाव के आयोजन व नियंत्रण करने का पूर्ण अधिकार और आजादी भारतीय संविधान ने दी है I मगर यह संस्था एक तरह से बड़े पार्टियों के फायदे के लिए ही काम कर रही है, जिससे देश का लोकतंत्र, पार्टीतंत्र/धनतंत्र में परिवर्तित हो चुका है इसलिए यहाँ के लोकतंत्र में चुनाव जीतने के लिए यह जरुरी नहीं है कि आप कैसे व्यक्ति है और आपकी समाज में कैसी छवि है और आपने समाज की भलाई के लिए क्या किया है बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आप किस पार्टी से हैं। देश में इस पार्टीतंत्र को स्थापित करने का मुख्य श्रेय  हमारे चुनाव आयोग को ही जाता है I चुनाव आयोग के चुनाव कराने का तरीका और दिशा-निर्देश भारतीय संविधान के आर्टिकल १४, 'समानता के अधिकार' के खिलाफ है I हमारा चुनाव आयोग चुनावों में समानता का अधिकार अभी तक लागू नहीं कर पाया है और न ही अभी तक उनकी सोच यहाँ तक पहुंची है I इसके साथ ही चुनाव आयोग ने भेद - भावपूर्ण इलेक्शन सिंबल आर्डर १९६८ बना रखा है I यह नियम चुनाव में विभिन्न उम्मीदवारों के बीच  भेद - भाव करता है I बड़ी पार्टियों को फिक्स सिंबल दे रखा है, जबकि छोटी पार्टियों तथा स्वतंत्र उम्मीदवारो को कुछ ही दिन पहले सिंबल दिया जाता है I चुनाव आयोग की गलत नीतियों और निष्क्रियता तथा समानता के अधिकार को स्थापित न कर पाने से बड़ी - बड़ी पार्टियाँ धनकुबेर बनी हैं और इस तरह भारत की राजनीति धन-व्यवस्था पर आधारित हो चुकी है। जिसे चुनाव आयोग का समर्थन प्राप्त है I अतः सामान्य जनता का इस लोकतंत्र से भरोसा उठता जा रहा है I इसलिए हमारे देश में एक ऐसे चुनाव आयोग की आवश्यकता है जो चुनाव में समानता का अधिकार स्थापित कर सके, जो चुनाव में धनतंत्र के बल पर जीत हासिल करने पर रोक लगा सके I ये सारी बातें कहना तो आसान है परन्तु  इसका समाधान क्या हो सकता है ? मैं चुनाव आयोग के नियम के खिलाफ सिर्फ आवाज ही नहीं उठा रहा इसका समाधान भी देना चाह रहा हूँ I इसके लिए चुनाव आयोग को सभी उम्मीदवारों को उनके चेहरे का फोटो फिक्स सिंबल के रूप में दे देना चाहिए ताकि जो व्यक्ति समाज के लिए ज्यादा काम करेगा उसके जीतने  की संभावना ज्यादा होगी I टीवी, रेडिओ, बैनर, पोस्टर - पम्पलेट आदि से चुनाव प्रचार पर पूर्ण लगाम होनी चाहिए I चुनाव का प्रचार विभिन स्कूल कॉलेजों आदि में उम्मीदवारों के डिबेट के द्वारा होनी चाहिए I सभी पार्टियों के फण्ड जप्त कर 'भारत निर्माण फण्ड' बना कर निष्पक्ष चुनाव के लिए उपयोग होना चाहिए, जो समानता के आधार पर आधारित हो I इस तरह से चुनाव कराने से न केवल चुनाव को निष्पक्ष बनाया जा सकता है अपितु चुनाव में होने वाले फिजूल खर्चो और धन की बर्बादी को भी रोका जा सकता है I परन्तु इस सब के लिए एक निष्पक्ष और बोल्ड फैसले की जरुरत है और यह काम सिर्फ चुनाव आयोग ही कर सकता है जो भारत के संविधान के अनुसार एक स्वतंत्र इकाई है I

Comments

Popular posts from this blog

T.C.Mathai & Anr. Vs. The District & Sessions Judge, Thiruvananthapuram, Kerala (1999) 3SCC 614. Date of Judgement: 31.03.1999.

Mahabir Prasad Singh vs. M/s Jacks Aviation Private Ltd; (1999) 1 SCC 37.

L.C.Goyal vs. Nawal Kishore (1997) 11 SCC 258.